क्या इंसान पहले बन्दर था?|| kya insan pehle bandar tha

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मोहम्मद सरताज नूरी
बरेली शरीफ

इस दौर में साइंसदानों ने काफी तरक्कियां कर ली हैं जिससे इंसानों को काफी फायदा भी पहुंचा है लेकिन हैरत होती है कुछ साइंसदानों की नज़रयात पर ऐसे बेतुके नज़रिए लोगों के सामने रखे जिसे कुबूल करना नामुमकिन है जैसे चार्ल्स डार्विन का एक नज़रिया है इंसान बंदर की औलाद है यह पहले बंदर था जैसे-जैसे वक्त गुज़रता गया बंदर तरक्की करते गए और बंदर इंसान की शक्ल इख्तियार करता गया।

डार्विन साहब ने दुनिया को यह बताने की कोशिश की के हम सब बंदर की औलाद हैं डार्विन के इस नज़रिए को बड़े-बड़े अकलमंद कहलाने वालों ने भी सही माना है।

आइए जानते हैं हक़ क्या है? हक़ तो वही है जो इस्लामी नज़रिया है।

 लेकिन पहले बाइबिल में देखें अहले किताब नसारा (ईसाई) की मुकद्दस आसमानी किताब क्या कहती है।

तर्जुमा:  और खुदाबंद (गॉड) ने ज़मीन की मिट्टी से इंसान को बनाया और उसके नथनों में जिंदगी का दम फूंका तो इंसान जीती जान हुआ।

जो बात बाइबिल में है वही बात कुरान में भी है।

इंसान और बंदर में कई चीजें एक जैसी हैं जैसे इंसान की तरह बंदर भी सीधा चल सकता है, जिन बीमारियों में इंसान मुव्तिला होता है लगभग वही बीमारियां बंदरों में भी पाई जाती हैं, इंसान के बाद बंदर ही जानवरों में सबसे अकल मंद होता है, कुछ हद तक गिनती भी गिन सकता है, खेलने के लिए नए-नए तरीके भी ईजाद कर लेता है, इंसान और बंदर का ढांचा भी एक जैसा है, बंदर के ढांचे में उतनी ही हड्डियां होती हैं,जितनी इंसानों में होती है दांतों की तादाद भी दोनों में यकसां हैं, लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि इंसान पहले बंदर था बाद में इंसान बना।

अगर यह मान लिया जाए कि बंदर तरक्की करके इंसान बन गया तो आज तो सारी तरक्कीयां मौजूद है सारी टेक्नोलॉजी मौजूद है तो इंसान से आप कुछ और क्यों नहीं बन जाते?

यह सब जानते हैं कि यह मुमकिन ही नहीं है कि एक नस्ल दूसरी नस्ल का रूप धारे कोई जानवर दूसरे के रूप में नहीं ढल सकता है।

हां कभी-कभी अपनी ही नस्ल में तब्दीली आ जाती है जैसे कि लड़का लड़की बन जाए। लेकिन यह नहीं हो सकता कि लड़का बकरा बन जाए या बन्दर बन जाए या कोई लड़की बकरी या बन्दरिया बन जाए।


वैसे भी तो यह बात अक़्ल में नहीं आती कि बंदर इंसान बन सकता है देखिए बड़ी बत्तखें और हंस राज आपस में कितने मिलते जुलते हैं लेकिन किसी ने यह कभी नहीं सुना या पढ़ा होगा कि फलां सदी में पाई जाने वाली बत्तख फलां सदी ईस्वी में हंसराज बन गई। या फलां सदी में पाई जाने वाली फलां चिड़िया फलां साल बुलबुल बन गई। हालांकि दोनों के जिस्म की बनावट तकरीबन एक जैसी होती है अगर कोई बत्तख हजारों साल गुज़रने के बाद भी हंसराज नहीं बन सकती सैकड़ों सालों में अगर कोई चिड़िया बुलबुल नहीं बन सकती तो जनाब यह बंदर इंसान के रूप में कैसे आ गए?

अगर यह मुमकिन होता तो जनाब गधे ना जाने कब के घोड़े बन गए होते क्योंकि गधे और घोड़ों में भी ज्यादा फर्क नहीं होता है।आखिर बंदर से इतनी हमदर्दी क्यों है?

बंदर से हमदर्दी रखने वाले बंदर को अपना जद्दे अमजद तस्लीम करने वालों को बंदर की औलाद कह कर पुकारिये फिर देखिए उनके चेहरे पर कैसे बारह  (12) बजते हैं। 

पता यह चला के लोग ज़बान से तो बोलते हैं के इंसान बन्दर की औलाद है लेकिन वह खुद बन्दर को अपना बाप  मानने को तैयार नहीं हैं

हकीकत यह है अल्लाह तआला ने जिसको जिस नस्ल में पैदा किया आज भी वह उसी नस्ल में है। और रही बात हम इंसानों की तो अल्लाह तआला ने इंसानों को तो मखलूक में सबसे अफज़ल बनाया है।

सूरह सज्दा 32 (7 से 9) तर्जुमा कंजुल ईमान 

"और पैदाइश इंसानो की इब्तिदा मिट्टी से फरमाई फिर उसकी नस्ल रखी एक बे कद्र पानी के खुलासा से फिर ठीक किया और उसमें अपनी तरफ से रूह फूंकी।

अब भी कोई बन्दर की औलाद बनने का ख्वाहिश मंद हो तो बन सकता है आपका अकीदा आपको मुबारक हो।

हमारा अकीदा यह है हज़रते आदम अलैहिस्सलाम दुनिया के पहले इंसान हैं और हम सब उन्ही की औलाद हैं।

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