अल्लामा इक़बाल का जीवन परिचय || allama iqbal biography in hindi

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मोहम्मद सरताज नूरी
बरेली शरीफ

अल्लामा इक़बाल के आबाओ अजदाद

अल्लामा इक़बाल के आबाओ अजदाद कश्मीरी पंडित थे उन्होंने बा कमाल वली अल्लाह के हाथ में हाथ देकर इस्लाम कुबूल किया था।


अल्लामा इक़बाल की विलादत

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है 
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

अल्लामा इक़बाल की विलादत 1876 ईसवी या 1877 ईसवी, में सियालकोट में हुई थी आपके वालेदैन ने आपका नाम इक़बाल रखा।

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आपके वालिद
आपके वालिद का नाम नूर मोहम्मद साहब है जनाब नूर मोहम्मद साहब एक नेक दिल इंसान थे नमाज़ रोज़ा के बहुत पाबंद थे हलाल रोजी की तलाश में रहते थे।

एक दिन जनाब नूर मोहम्मद साहब ने अल्लामा इक़बाल को सामने बैठा कर कहा फरमाने लगे इकबाल याद रखना दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दुनिया से प्यार करते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे दुनिया प्यार करती है अब तुम्हें फैसला करना है तुम किन लोगों में से हो।

आपने कहा अब्बा क्या दुनिया मुझसे प्यार करेगी आपके वालिद मोहतरम ने फरमाया: हां हां क्यों नहीं अगर तुमने इल्म हासिल किया और लोगों की इस्लाह कि अगर तुमने हर वक्त अपने आमाल व किरदार से बेहतरी का दर्स दिया तो देखना यह ज़माना हमेशा तुमसे प्यार करता रहेगा और हमेशा तुम्हें याद रखेगा।

अल्लामा इक़बाल अलैहिर्रहमा फरमाते थे मैंने अपने नबी का नाम अपने बाप की ज़बान से सुना है।
अल्लामा इक़बाल की तालीम
आपकी तालीम की इब्तिदा मक़तब में हुई उसके बाद स्कूल में दाखिल हुए हाई स्कूल सियालकोट में पास करके मकामी कॉलेज में दाखिल हुए। गालिबन शायरी की इब्तिदा उसी जमाने में हुई यहां आपको मौलाना सैयद मीर हसन साहब की शागिर्दी का शर्फ हासिल हुआ।

आपने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में दाखिला लेकर फलसफा और अरबी लेकर बी-ए पास किया 1899 ईसवी में फलसफा में एम ए पास किया। आप इब्तिदा से आखिर तक आपने हम चश्मों में हमेशा सबसे मुमताज़ (अफज़ल) रहे।

1905 ईसवी में आप इंग्लैंड तशरीफ ले गये कैम्ब्रिज से फलसफा ए अखलाक में डिग्री ली 1907 ईस्वी में म्यूनिख से पी एच डी की डिग्री ली।

 लंदन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे
 फिर लंदन वापस आए वहां 6 महीने लंदन यूनिवर्सिटी में अरबी के प्रोफेसर भी रहे तीन साल कयाम करने के बाद 27 जुलाई को 1908 ईस्वी को लाहौर वापस आगये।


 sir का खिताब
1923 ईस्वी में बरतानिया की सरकार ने आपको sir का खिताब दिया डॉक्टर साहब ने कभी खिताबात एज़ाज़ात के लिए ख्वाहिश या कोशिश नहीं की और ना वह इस खिताब को किसी खास निगाह से देखते थे उनके जानने वाले जानते हैं कि वह किसी दूसरी दुनिया में रहते हैं जहां sir और servant दोनों यकसां नज़र आते हैं।

बंदा ओ साहब ओ मोहताज ओ ग़नी एक हुए 
तेरी सरकार में पहुँचे तो सभी एक हुए

वकालत
1934 ईस्वी तक आप वकालत के कामों में मसरूफ रहे उन्हें इस पेशे से कोई खास दिलचस्बी कभी नहीं हुई और होती भी कैसे जो शख्स दिन रात किसी दूसरे आलम में रहता हो और शायराना दिल व दिमाग फलसफयाना मिज़ाज और आलिमाना तर्जे़ जिंदगी रखता हो जिसकी तवज्जो तमाम तर मिल्लते इस्लामिया की बेहतरी में मबज़ूल (मसरूफ) रहती हो

जिसके दिल में कौम का दर्द रहता हो जिसका बहुत सा बक्त गौरो फिक्र में बसर होता हो उसे किसी और काम में कैसे दिलचस्बी हो सकती है।

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डॉ इकबाल जब यूरोप गए थे तब वह वतन के शायर थे मगर जब वापस आए तब इस्लामी शायर बन चुके थे। और यह तब्दीली उनके कलामों में देखी जा सकती है।

अल्लामा इक़बाल के मुरशिद
अल्लामा इक़बाल फरमाते हैं मैं सोचता रहता मैं किस शख्स को अपना मुर्शिद मानू मौलाना रूमी को मानू या हज़रत फखरुद्दीन राज़ी को मानू कई रातें इसी सोच विचार में गुजर गईं आखिरकार
अल्लामा इक़बाल हज़रत मौलाना रूमी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद हो गए।

अल्लामा इकबाल की सीरत
 आप सादा जिंदगी जीते थे, सादा लिबास पहनते थे,सादा रिहाइश,सादा गुफ्तगू करते हत्ता के हर बात से सादगी टपकती थी अल्लामा इकबाल का दरें फैज़ सबके लिए खुला रहता था अल्लामा इकबाल तन्हाई पसंद करते थे, अल्लामा इकबाल अपनी वालिदा मरहूमा से बहुत मोहब्बत करते थे।

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इक़बाल और कुरआन
 अल्लामा इकबाल ने आला दर्जे की तालीम हासिल की मशरिक़ व मगरिब के फलसफे पड़े कदीम जदीद सबका मुताअला किया लेकिन उन को सुकून मिला तो कुरआन से मिला।अल्लामा इकबाल सुबह फजर से पहले कुरआन पढ़ा करते थे और कुरआन पढ़ते तो इतना रोते कुरआन के पेज आपके आंसुओं से भीग जाते थे।

कलंदर ए लाहौरी हज़रत अल्लामा इकबाल ने अपने कलाम में कुरान ए मजीद का पैगाम दिया है।

अल्लामा इकबाल फरमाते हैं
 अगर मेरे दिल की मिसाल उस आईने की सी है जिसमें कोई जौहर ही ना हो और अगर मेरे कलाम में कुरआन के सिवा किसी और की तर्जमानी है तो (ए नबी सल्लल्लाहो तआला अलेहि वसल्लम) आप मेरे फिक्र के नामूस का पर्दा खुद चाक फरमा दें और हश्र के दिन मुझे ख्वार व रुसवा कर दें और (सबसे बढ़कर यह) मुझे अपने क़दम बोसी की सआदत से मेहरूम फरमा दें।
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अल्लामा इक़बाल का विसाल
20 अप्रैल की रात 11 बजे आप की तबीयत ज्यादा खराब हो गई डॉक्टर ने कहा मैं बेहोशी का इंजेक्शन लगा देता हूं जिससे आपको आराम मिलेगा तो हज़रत अल्लामा इकबाल अलैहिर्रहमा ने कहा मैं बेहोशी के आलम में मौत का सामना नहीं करना चाहता।

इसी 'इक़बाल' की मैं जुस्तुजू करता रहा बरसों 
बड़ी मुद्दत के बाद आख़िर वो शाहीं ज़ेर-ए-दाम आया

सुबह का वक्त था आपका खास खादिम अली वख्श आपके पास था उनसे कहा मेरे सीने में दर्द हो रहा है और अपना हाथ सीने पर रख दिया अली बख्श की गोद में आपका सरे मुबारक था ज़बान पर अल्लाह का नाम आया और आपका 4:55 पर विसाल हो गया। (21 अप्रैल 1938 ईस्वी)

 सुबह होते ही यह खबर बिजली की तरह हर तरफ फैल गई और घर में चाहने वालों का हुजूम लगना शुरू हो गया आपका चेहरा देखने के लिए लाखों लोग जमा हो गए।

जनाज़ा तैयार किया गया जनाजे की चारपाई में बड़े-बड़े बांस बांधे गए ताकि ज्यादा लोग कांधा दे सके आप की नमाजे जनाजा इस्लामिया कॉलेज में हुई फिर वहां से आपका जनाजा बादशाही मस्जिद में पहुंचा लोगों का ख्याल था कि नमाजे जनाजा बादशाही मस्जिद में होगी वहा भी लोगों का हुजूम मौजूद था आप की नमाजे़ जनाजा मौलाना गुलाम मुर्शिद ने पढ़ाई।

 अल्लामा इकबाल की ख्वाहिश के मुताबिक लाहौर में बादशाही मस्जिद के बराबर में रात 10:30 या 11:00 बजे आप को दफन किया गया।

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रुखसत ऐ बज़में जहां सूए वतन जाता हूं मैं
आह! इस आवाद वीराने में घबराता हूं मैं।

 एक अजीम शायर और मुफक्किर के तौर पर कौम हमेशा उनकी एहसान मंद रहेगी अल्लामा इकबाल ने मुसलमानों को जीने का सलीका सिखाया आपकी शायरी ज़िंदा शायरी है।

 यही वजह है कलामें इकबाल दुनिया के हर हिस्से में पढ़ा जाता है और मुसलमनाने आलम इसे बड़ी अकीदत के साथ ज़ेरे मुताअला रखते हैं और उनके फलसफे को समझते हैं अल्लामा इकबाल ने नई नस्ल में इंकलाबी रूह फूंकी और इस्लामी अज़मत को उजागर किया।

उनकी कई किताबों के अंग्रेजी,जर्मनी,अरबी ज़वानों में तर्जुमें हो चुके हैं

 बिला मुबालगा अल्लामा इक़बाल अलैहिर्रहमा एक अज़ीम मुफक्किर माने जाते हैं और उन्हें हकीमुल उम्मत के लक़ब से भी याद किया जाता है।

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