माहे शाबान की फजी़लत || mahe shaban mubarak


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mahe shaban mubarak

 मोहम्मद शाहिद रजा़ नायाब क़दरी

क़सम उस रोशन किताब की बेशक हमने उसे बरकत वाली रात में उतारा बेशक हम डर सुनाने वाले हैं।
 तर्जुमा कंज़ुल ईमान (पारा  25 रुकु 14)

  हज़रते आयशा सिद्दीका़ रजी़ अल्लाहु ताला अन्हा फरमाती हैं कि रसूले कायनात हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम शाबान से ज़्यादा किसी महीने में रोजे़ नहीं रखा करते थे आप शाबान का पूरा महीना रोजा़ रखते और एक रिवायत मे है कि शाबान के महीने में अक्सर दिन रोजा़ रखते।
(बुखारी व मुस्लिम)

 हज़रते अनस रज़ि अल्लाह तआला अन्हू से रिवायत है के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताआला अलैही वसल्लम से सुवाल हुआ कि रमजा़नुल मुबारक के बाद अफज़ल रोजा़ कौन सा है? इरशाद फरमाया रमजा़न की ताजी़म के लिए शाबान का रोजा़। (तिरमिज़ी शरीफ 144)

 हज़रते उसामा बिन जै़द रजी़ अल्लाह तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:

शाबान का महीना रजब और रमजा़न के दरमियान का महीना है. लोग इसकी फजी़लत से गा़फिल हैं हालांकि इस महीने में बंनदों के आमाल परवरदिगार ए आलम की जानिब उठाए जाते हैं. लिहाजा़ मैं इस बात को पसंद करता हूं कि मेरा अमल बारगाह ए इलाही में इस हाल में पेश हो कि मैं रोजा़दार हूं।
(शोऐबुल ईमान 3820)

 हज़रते आयशा सिद्दीका़ रज़िअल्लाहो तआला अन्हा से रिवायत है. कि मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम से दरयाफत किया  कि आप माहे शाबान में इस कसरत से रोजे़ क्यों रखते हैं? "इरशाद फरमाया इस महीने में हर शख्स का नाम मलकुल मौत के हवाले कर दिया जाता है जिनकी रोहें इस साल में कब्ज़ की जाएंगी  लेहाजा़ मैं इस बात को पसंद करता हूं कि मेरा नाम इस हाल में हवाले किया जाए कि मैं रोजा़दार हुं। (फतहुल बारी जिलद 4 स 253)

 पत्थर में आदमी

सैयदना हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का एक रोज़ एक पहाड़ पर गुज़र हुआ आपने उस पहाड़ पर एक सफेद पत्थर देखा जिसे आपने गौ़र से देखा और उसकी खूबसूरती पर ताज्जुब फरमाया अल्लाह  ताला ने फरमाया ऐ ईसा (अलैहिस्सलाम) क्या तुम चाहते हो कि मैं इस से भी ज़्यादा ताज्जुब खेज़ एक चीज़ तुम पर ज़ाहिर करूंँ हज़रत ईसा {अलैहिस्सलाम} ने अर्ज़ किया हॉ इलाही मैं चाहता हूँ
 फिर खुदा के हुक्म से वह पत्थर फट पड़ा और उसमें से एक मुबारक शख्स निकला जिसके हाथ में एक हरी शाख थी  के जिसके साथ अंगूर लगे हुए थे  हज़रत ईसा {अलैहिस्सलाम} से उस शख्स ने कहा ऐ अल्लाह के पैगंमबर ये अंगूर मेरे हर दिन की रोजी़ है और मैं इस पत्थर में हर वक्त इबादत में लगा रहता हूंँ हज़रत ईसा {अलैहिस्सलाम} ने पूछा कि तुम इस पत्थर में कितनी मुद्दत से इबादत मे मशग़ूल हो वोह बोला 400 बरस से, इस पर ईसा अलैहिस्सलाम ने बारगाहे इलाही में अरज़ कि या इलाही यह शख्स बड़ा ही खुशनसीब है मेरे ख्याल में इससे बढ़कर और कोई खुशनसीब और अफज़ल ना होगा तो खुदए तआला ने फरमाया मेरे आखि़री नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम की उम्मत में से जो शख्स भी शाबान की 15 वीं रात को दो रकअत नमाज़ पड़ेगा वोह इस शख्स की 400 बरस की इ़बादत से भी ज़्यादा अजर पाएगा। {नुजहत-उल-मजालिस}

शाबान-उल-मुअज़ज़म की 15 वीं रात

प्यारे सुन्नी भाईयों अल्लाह तआला ने शाहबान-उल- मुअज़म की 15वीं रात को बड़ी फजी़लत अता फरमाइ है. खुशनसीब हैं वोह लोग जो इस रात को जागकर अल्लाह तआला की इबादत व रियाज़त करके उसको राजी़ कर लेते हैं और बहुत दरजात पा लेते हैं.
शबे बरात रब तआला की मुबारक रातों में से एक मुकद्दस रात है यह उम्मते मोहम्मदिया के लिए नायाब तोहफा है  इस रात अल्लाह तआला अपने बंदों पर खा़स  रहमतो अनवार की बारिश बरसाता है गुनाहगार बंदों को जो सच्चे दिल से उसकी बारगाह में तोबा करते हैं उन्हें बख्श ता है.
कुछ नादान और जाहिल लोग इस रात पटाखे़ खेल तमाशे फुलझड़ी   सुलगाते हैं  ऐसे लोगों को समझाना चाहिए और इस रात के फजी़लत बताना चाहिए ताकि वोह जहालत की तारीकी से निकलकर हिदायत की रोशनी में अपनी जिंदगी को बसर करें और इस रात इबादत व रियाज़त करके अपने पैदा करने वाले खालिक़ व मालिक को राजी़ कर लें त दुनिया भी कामयाब हो जाए और आखिरत भी कामयाब हो जाए.

 शबे बरात मे मग़रिब के बाद नफल नमाज़ पढ़ने का तरीका़


शाबान-उल-मुअज़ज़म की 15 वीं रात को मग़रिब के बाद तीन बार सूरह यासीन शरीफ पढ़े पहली बार तूले उम्र मअ आफियत (लमबी उम्र आफियत के साथ )की नियत से 

 दूसरी बार दफऐ-बला (बला दूर होने)की नियत से  
तीसरी बार हुसूल गि़ना (मालदारी हासिल होने)की नियत से  
और हर मर्तबा यासीन शरीफ पढ़ने से पहले 2 रकात नमाज़ नफल पढ़े  और 6 नफल के बाद दुआएं निसफे शाबान पड़े 
 और उस दिन ग़ुसल करना मोजिबे नजात अज़ बला व सहर व जादू( बला और जादु से नजात हासिल होने मोजिब) है  और बेहतर यह है कि बेरी के सात पत्ते पीसकर एक घड़ा(बालटी) पानी मिलाकर उस से ग़ुसल करे 
 और हुजू़र आला हज़रत और सरकार मुफ्तीऐ आज़मे हिंद अलैहिमुर-रहमा का इस पर अमल रहा है
 और बेहतर यह है कि 14 शाबान को अपने मुसलमान भाइयों के हुक़क़ मुआफ कर दें  और उनके हुकूक़ मुआफ करा लें  ताकि ज़िम्मा से हुकूकुल इबाद साक़ित(खतम) हो जाऐं.
(आमाले रजा़ सफा न 113)

 शब बे दारी कैसे केरें शबे बरात में

 कु़रआने पाक की तिलावत करें. दुरूद पढे़ं कम से कम 300 बार इससे ज़्यादा पढ़ना और भी  ज़्यादा बेहतर है. घर में ही क़जा़ए उमरी पढ़ें  क़जा नमाज़ का सवाब नफल नमाज़ से ज़्यादा है उसे अपनी जिंदगी में ही पूरा करना ज़रूरी है वरना क़ियामत के दिन पकड़ होगी. इसी तरह रात भर जागने से शब बेदारी का सवाब हासिल होगा. 15 शाबान को रोजा़ रखें अगर रमजा़न शरीफ का कोई रोजा़ छूटा हो तो उसी दिन कजा़ रोजा़ रखें कियुं कि फर्ज़ रोजे़ का सवाब नफल रोजे़ से ज़्यादा है.

 नोट

 15 शाबान को बरेली शरीफ में सहरी का आखिरी वक्त 4:33 पर है  इस से 5 मिनट पहले खा पीकर फारिग होलें.

खुदा अमल की तौफीक़ अता करे। आमीन

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