मोहम्मद सरताज नूरी
इस्लाम से पहले औरत की हैसियत
इस्लाम में औरतों का क्या मकाम है उनके क्या हुकूक हैं इस बारे में बात करने से पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि इस्लाम से पहले और धर्मों में औरत का क्या मकाम था और दुनिया में इंसानों के नजदीक औरत की क्या हैसियत थी?
इस्लाम से पहले औरतों की बदतर हालत थी औरतों को ज़लील समझा जाता था यूनानीयों के यहां औरतों को खरीदा व बेचा जाता था उन्हें किसी भी प्रकार के हक हासिल नहीं थे सारे हक मर्दों की जागीर थे यूनानीयों का प्रसिद्ध फलसफी सुकरात कहता है कि दुनिया के पतन व गिरावट की सबसे बड़ी वजह औरतों का वजूद है औरत उस ज़हरीले पेड़ जैसी है जिसका बाहरी रूप तो बड़ा सुंदर होता है मगर उसे परिंदे खाते हैं तो मर जाते हैं।
हिंदुओं के यहां औरत को मारने पीटने का रिवाज आम था कुछ राजाओं की कई कई सौ रानियां हुआ करती थी अगर शौहर मर जाए तो उसकी बीवी को उसकी चिता पर जिंदा जला दिया जाता था अगर ऐसा नहीं करते तब भी उसे कोई इख्तियार नहीं था सफेद कपड़ों में तन्हा जिंदगी गुजारा करती जुआ में हारने वाला जीतने वाले को अपनी बीवी दे देता था लड़की जवान हो जाती तो उसको दान कर दिया जाता था माहवारी के दिनों में उसे अछूत करार दिया जाता था।
चीनियों ने औरत की उस हानिकारक पानी से मिसाल दी है जो खुशहाली और माल व दौलत को बहा ले जाता है एक चीनी को यह हक हासिल था कि वह अपनी बीवी को बेच सकता था और जिंदा जमीन में दफन भी कर सकता था।
फिलिस्तीन में लोगों का ख्याल था कि औरत को आराम करने की कोई जरूरत नहीं है।
रूसीओं का मानना था कि औरतों में रूहू होती ही नहीं है उनके यहां भी औरतों का कोई स्थान नहीं था औरतों को खंभे से बांधकर उनके ऊपर खौलता तेल उड़ेल कर उन्हें सजा दी जाती थी।
यहूदी औरत को लानत के लायक समझते थे।
ईसाइयों का मानना था कि औरत शैतान होती है एक ईसाई विद्वान ने कहा था औरत का ताल्लुक इंसानी जिंस से नहीं है।
वर्नाफुन्त पादरी का मानना था जब औरत को देखो तो यह मत समझो कि तुम इंसानी मखलूक या दरिंदे जानवर को देख रहे हो बल्कि जिसे देख रहे हो वह अपनी ज़ात में शैतान है।
इस्लाम से पहले अरबों के यहां भी औरत का कोई मकान नहीं था एक बाप अपनी बेटी को जिंदा दफन कर दिया करता था औरत को ज़लील व हकीर समझा जाता था।
556 ईसवी में फ्रांस के लोगों ने एक कांफ्रेंस की जिसमें कहा गया था औरत इंसान तो होती है पर उसको मर्दों की खिदमत के लिए पैदा किया गया है।
1805 ईसवी में इंग्लिश कानून में था कि पति अपनी पत्नी को बेच सकता है और उस वक्त औरतों की कीमत 6 पाउँड तय की गई थी
नाज़रीने किराम आपने देखा इस्लाम से पहले औरतों के साथ कैसा-कैसा जुल्म व सितम किया जाता था औरत को इंसानी मखलूक नहीं समझा जाता था जानवरों की तरह औरतों की कीमतें तय की गई थी।
इसके बाद इस्लाम आया और इस्लाम ने औरतों को इज्जत बख्शी और औरतों पर हो रहे जुल्मों सितम का खात्मा किया इस्लाम ने हमें यह सिखाया औरतों के भी हुकूक हैं।
औरत इस्लाम की नज़र में
अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है।
ऐ लोगों हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और शाखें और कवीले किया के आपस में पहचान रखो बेशक अल्लाह के यहां तुम में ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम में ज्यादा परहेज़गार है बेशक अल्लाह जानने वाला खबरदार है।
(अल कुरआन सूरह अल हुजरात आयत 13)
और एक जगह अल्लाह तआला फरमाता है।
और जो कुछ भले काम करेगा मर्द हो या औरत और हो मुसलमान तो वह जन्नत में दाखिल किये जायेंगे और उन्हें तिल भर नुकसान न दिया जाएगा।
(अल कुरआन सूरह अल निसा आयत 124)
और एक जगह अल्लाह तआला फरमाता है।
और अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी जिंस से औरतें बनाई और तुम्हारे लिए तुम्हारी औरतों से बेटे और पोते नवासे पैदा किए।
(अल कुरआन सूरह अल नहल आयत 72)
और एक जगह अल्लाह तआला फरमाता है।
वह तुम्हारी लिबास हैं और तुम उनके लिवास।
(अल कुरआन सूरह अल बकरा आयत 187)
हदीसे पाक की रोशनी में जानते हैं इस्लाम में औरत का क्या मकाम व मर्तबा है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदि अल्लाह तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि यह पूरी दुनिया एक सामान है और दुनिया का बेहतरीन सामान नेक औरत है।
(मिश्कात व निसाई)
हज़रत अबू हुरैरा रदि अल्लाह तआला अन्हु फरमाते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया औरतों के बारे में मुझसे खैर की वसीयत कुबूल करो। (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत अबू हुरैरा रदि अल्लाह तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया सबसे ज्यादा कामिल ईमान वाले वह शख्स हैं जिनके अखलाक सबसे उम्दा हों और तुम में बेहतरीन लोग वह हैं जो अपनी औरतों के साथ अच्छे हो।
नाज़रीने किराम इन सभी हदीसों से साबित होता है कि औरत को आज जो इज्जत मिली है वह पैग़ंबरे इस्लाम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की वजह से मिली है इस्लाम में औरतों को बुलंदी की इन्तिहाई मंजिल तक पहुंचाया है।
औरतों पर एहसान
इस्लाम से पहले बाप की जायदाद में बेटी का कोई हक नहीं था बेटी को कुछ नहीं दिया जाता था इस्लाम ने इस जहालत को खत्म किया और बाप की जायदाद में बेटी को भी हक दिलाया।
दुनिया में जहां बेवह औरतों को उनके शौहरों की चिता पर जिंदा जला दिया जाता था उसको ज़लील समझा जाता था लेकिन पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम ने एक बेवह 40 साला खातून हज़रत खदीजा रदी अल्लाह तआला अन्हा को अपनी बीवी बनाकर बिगड़े हुए मुआशरे को मिजाज़ दिया कि यह बेवह औरतें काबिले लानत नहीं बल्कि काबिले रहमत और काबिले इज्जत हैं।
जहां बेटी पैदा होने पर बेटी को जिंदा दफन कर दिया जाता था पैग़ंबरे इस्लाम ने बेटीओं को इज्जत देते हुए फरमाया बेटी घर की रहमत है जब किसी के घर में बेटी पैदा होती है अल्लाह तआला उसके घर में 10 रहमते नाज़िल फरमाता है।
और अपनी बेटी हज़रत फातिमा रदि अल्लाह तआला अन्हा के बारे में फरमाया फातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है।
नाज़रीने किराम आज यह नारा लगाना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बहुत आसान है आज तो सारी दुनिया औरतों के हुकूक की बात कर रही है लेकिन ऐसे दौर में जब बेटी को जिंदा जलाना फख्र समझा जाता हो औरत को खुदा की मखलूक ना समझा जाता हो औरत का जानवरों की तरह बाजार में सौदा किया जाता हो औरतों को ज़लील समझा जाता हो।
ऐसे वक्त में यह कहना मेरी बेटी फातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है। खराब मुआशरे में औरतों की इज्जत की बात करना यह बहुत बड़ी बात है बेशक यह काम मुहसिने इंसानियत पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम का है और पैग़ंबरे इस्लाम का औरतों पर यह खास एहसान है जो अब से 1500 साल पहले हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम ने औरतों पर किया।
ऐसे वक्त में यह कहना मेरी बेटी फातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है। खराब मुआशरे में औरतों की इज्जत की बात करना यह बहुत बड़ी बात है बेशक यह काम मुहसिने इंसानियत पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम का है और पैग़ंबरे इस्लाम का औरतों पर यह खास एहसान है जो अब से 1500 साल पहले हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम ने औरतों पर किया।
नाज़रीने किराम हमने यहां चंद कुरआन की आयतें और चंद हदीसे पेश करके यह साबित किया कि इस्लाम ने औरतों को इज्ज़त बख्शी है।
यह एक मुखतसर सा मज़मून है औरतों को इस्लाम ने क्या-क्या मकाम अता किये और क्या क्या हुकूक दिलाए अगर तफसील से लिखें तो एक ज़हनीम जिल्द तैयार हो जाएगी। इंशा अल्लाह तआला।
अहले इल्म हज़रात से गुज़ारिश है अगर कहीं कोई खामी नज़र आये तो दलील के साथ हमारी इस्लाह फरमायें।
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