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मोहम्मद सरताज नूरी
बरेली शरीफ
बरेली शरीफ
अल्लाह तआला हर ऐव से पाक है अल्लाह ने अपने बन्दो को इबादत के लिए पैदा फरमाया है और अपने बन्दों की रहनुमाई के लिए अपने महबूब बन्दों को दुनिया में भेजा। ताके अल्लाह के बन्दे इसके बताये हुए रास्ते पर चल सकें और दुनिया व आखिरत में चैन व सुकून उसी के लिये है जो अल्लाह की इबादत करते हैं और उसके बताये हुये रास्ते पर चलते। हैं और वही लोग अल्लाह के फरमाबरदार हैं। आज हर इन्सान चाहता है मझे दिली सुकून। मिले और दुनिया के ऐश व आराम सारी खुशियाँ भी मिलें हालांके अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की नाफरमानी के साथ कौन है जो राहत व सुकन के साथ रह सके ? अगर हम गुनाहों की एक लिस्ट तैयार करें और देखें के गुनाह करने से हमें अब तक कितना फायदा पहुंचा है तो पता चलता है गुनाहों की फहरिस्त में ना तो कोई फायदा अब तक पहुँचा है और न ही पहुँचेगा और ना ही गुनाह में कोई लज़्ज़त है।
चन्द गुनाहों की फहरिस्त जिनसे कोई फायदा नहीं पहुँचता उसके बावजूद भी मुआशरे में आम हैं।
जैसे झूठ बोलना, गीवत करना, झूठी कसम खाना, मुसलमान का मज़ाक उड़ाना, नसब की वजह से दूसरे को तअना देना, गाली देना, छुपकर दूसरों की बातें सुनना, उल्मा, औलिया, अल्लाह की शान में तौहीन करना, बुरे अलकाब से किसी का ज़िकर करना, बिला इजाज़त किसी के घर में झाँकना, पाजामा पैन्ट टखनों से नीचे पहनना, बे ज़रूरत सत्र खोलना, झूठी गवाही देना, औलाद में बराबरी न करना, बच्चों को नाजाइज़ लिबास पहनाना, नापतोल में कमी करना, शराब पीना, जुआ खेलना, नशा करना, सूद लेना मस्जिद में बेज़रूरत बात करना वगैरह ये सब ऐसे गुनाह हैं इनसे न कोई फायदा है और न ही इनमें कोई लज़्ज़त है और गुनाह तो हर हाल में गुनाह है चाहे जैसे भी हों हर मुसलमान को गुनाह से बचना चाहिये और तौबा करते रहना चाहिए।
एक हदीस में है के गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उससे गुनाह सादिर हुआ ही नहीं। अल्लाह तआला अपने बन्दों में तौबा करने वालों को महबूब रखता है और उसके गुनाहों को माफ फरमा देता है।
सच्ची तौबा का मतलब
सच्ची तौबा अल्लाह तआला ने वह नफीस शये बनाई है के हर गुनाह के इज़ाले को काफी यो बाकी है कोई गनाह ऐसा नहीं के सच्ची तौबा के बाद बाकी रहे यहाँ तक कुफ्र भी सच्ची तौबा से जाइल हो जाते हैं सच्ची तौबा के माअना ये है के गुनाह पर इसलिए के वह उसके रब तआला की नाफरमानी नादियो पशीमा होकर फौरन छोड़ दे और आयन्दा कभी इस गुनाह के पास न जाने का सच्चे दिल से पूरा इरादा करे जो चारह कार उस की तलाफी का अपने हाथ में हो बजा लाए मसलन नमाज़ रोजा, के तर्क या गसब रिशवत रबा से तौबा की है तो सिर्फ आइन्दा के लिए उन जराइम को छोड़ देना ही काफी नहीं बल्के उस के साथ ये भी ज़रूरी है के जो नमाज़ रोजे नागा किये उनकी कजा करे जो माल जिस से छीना चुराया, रिश्वत सूद में लिया उन्हें वापिस दें और वह न रहे हों तो उनके वारिसों को वापस करे या माफ कराये पता न चले तो उतना माल तसद्दुक करदे और दिल में नियत रखे के वह लोग जब मिले अगर उस तसद्दुक पर राजी न हुआ तो अपने माल से भी उन्हें फिर दूंगा ।
(फतावा रजाविया ज०१ स०97 )
ऐलानिया गुनाह
अस्ल ये है के गुनाह ऐलानिया दोहरा गुनाह है के ऐलान गुनाह दूसरा गुनाह बल्के उस से भी बद्तर गुनाह है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं मेरी सब उम्मत आफियत में है सिवा उनके जो गुनाह आशकारा करते हैं ( बुखारी , मुस्लिम )
गुनाह पोशीदा की तौबा पोशीदा और आशकारा की आशकारा
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि बन्दों से अज़ाब हमेशा उठा हुआ रहेगा जब तक वह गुनाहों को छुपाते रहेंगे फिर जब वह गुनाहों को आशकारा करेंगे तो उन पर दोज़ख का अजाब लाज़िम हो जायेगा। ( फतावा रज़विया स० 9 स० 255 )
गुनाह की सियाही
गुनाह के मैल तौबा सही से धुल जाते हैं और वह ऐसा हो जाता है जैसे उसने कोई गुनाह किया ही नहीं और गुनाह से दिल पर सियाह दाग पड़ जाता हैं अगर तौबा करके गुनाह से बाज़ रहे तो वह दाग खत्म हो जाता है और दिल साफ हो जाता है हदीस में है जब बन्दा कोई गुनाह करता है उसके दिल में एक सियाह धब्बा पड़ जाता है पस अगर वह उससे जुदा हो गया और तौबा इस्तगफार की तो उसका दिल साफ हो जाता है और अगर दोबारा किया तो और सियाही बढ़ती है और यहाँ तक के उसके दिल पर छा जाती है और यही वह ज़ंग जिसका अल्लाह तआला ने ज़िकर फरमाया के यूँ नहीं बल्के ज़ंग चढ़ा दिया है उनके दिलों पर उन गुनाहों ने जो वह करते थे।
हराम माल ज़बानी तौबा से पाक नहीं होता
बाद लोग हराम के ज़रिय से मालो दौलत जमा करते हैं फिर तौबा करते हैं तो क्या तौबा करने से हराम माल हलाल हो जायेगा ?
इस सिलसिले में आला हजरत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा फाज़िले बरेलवी फैसला किस अन्दाज़ में फरमाते हैं।
जबानी तौबा से हराम माल पाक नहीं हो सकता बल्के तौबा के लिए शर्त है के जिस जिस से माल लिया है वापस दे वह न रहे हों तो उनके वारिसों को दें पता न चले तो उतना माल तसद्दुक करदे उसके बगैरह गुनाह से बराअत नहीं।
अल्लाह तआला हम सबको गुनाहो से बचने और नेक अमल करने की तौफीक़ अता फरमाये। आमीन

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