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| imam hussain |
सगे रज़ा नसीम आसी पीर भौड़ा बरेली शरीफ
जन्नत हुसैन की है खज़ीना हुसैन का
क्यों न हो जब है मक्का मदीना हुसैन का
लगता था रो रहा है जहाँ बादे करबला
करती थी ज़िक्र जब भी सकीना हुसैन का
हर वह जगह ज़ियारते फिरदौस बन गई
जिस जिस जगह गिरा है पसीना हुसैन का
मज़लूम की हयात है दुनिया से रुखसती
ज़ुल्मो सितम की मौत है जीना हुसैन का
किस दर पे जायेगा तू यज़ीदी बता मुझे
काबा हुसैन का है मदीना हुसैन का
ज़ालिम के तीर छलनी ही कर देते दीन को
आता नहीं जो बीच में सीना हुसैन का
फिर से यज़ीदियत का जनाज़ा उठेगा अब
लो आ रहा है फिर से महीना हुसैन का
पढ़ लो वला तकूलु की आयत का तर्जुमा
साबित है लोगों आज भी जीना हुसैन का
प्यासे रहे तो दुनिया को सैराब कर दिया
क्या रंग लाता सोच लो पीना हुसैन का
महशर में तू सुकून को तरसेगा सुन यज़ीद
तूने सुकून चैन है छीना हुसैन का
दुनिया नसीम आसी रहे या नहीं रहे
पर ज़िक्र खत्म होगा कभी न हुसैन का

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